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नेटफ्लिक्स क्या है!







 
हम आज तक किसी फ़िल्म या नाटक को या तो अपने टीवी में देखते थे या पिक्चर हॉल में या फिर सीडी, डीवीडी में.
लेकिन अब इनके अलावा एक और तरीके से हम फ़िल्म, सीरियल वगैरह देख सकते हैं. वो तरीका दिया है इंटरनेट ने. तरीके का नाम है ‘वीडियो स्ट्रीमिंग‘. 

यू-ट्यूब, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार और अमेज़न प्राइम तक इसी वीडियो स्ट्रीमिंग के चलते टेलीविज़न और सिनेमा हॉल से अलग हैं.


दुनिया की सबसे बड़ी ऑन-डिमांड वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस ‘नेटफ्लिक्स’ की सेवाएं भारत में भी लांच हो चुकी हैं. जो लोग अपनी पसंद की फिल्में, टेलीविजन शो या अन्य वीडियो अपनी सुविधा के समय पर देखना चाहते हैं, उनके लिए यह सेवा काम की है. माना जा रहा है कि इससे टीवी, लैपटॉप, स्मार्टफोन आदि पर मूवी और वीडियो देखने के तौर-तरीकों में बदलाव की एक नयी शुरुआत हो सकती है.


इस वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए तीन चीज़ें होना ज़रूरी हैं –
# 1) इंटरनेट
जैसे टीवी में सिग्नल, डिश और केबल का तामझाम चाहिए होता है डाटा को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के वास्ते, वैसे ही वीडियो स्ट्रीमिंग वाली ट्रेन के लिए ‘पटरी’ का काम करता है इंटरनेट. इसी पर चलकर डाटा एंड यूज़र यानी दर्शक तक पहुंचता है.
# 2) स्क्रीन
जैसे टेलीविज़न के प्रोग्राम देखने के लिए टीवी स्क्रीन और फ़िल्में देखने के लिए रजत-पटल की ज़रूरत है वैसे ही स्ट्रीमिंग सर्विसेज़ के लिए भी हमें स्क्रीन की ज़रूरत पड़ेगी. अच्छी बात ये है कि टीवी और सिनेमा हॉल की तरह स्ट्रीमिंग सर्विसेज़ केवल एक दो स्क्रीन तक सीमित नहीं है.
स्मार्ट-टीवी
आप अपने स्मार्टफोन में किसी स्ट्रीमिंग सर्विस का एप डाउनलोड कर सकते हैं, आप अपने लैपटॉप या डेस्क टॉप में इन स्ट्रीमिंग सर्विसेज़ की वेबसाइट में जा सकते हैं. साथ ही अपने टीवी में भी इन स्ट्रीमिंग सर्विसेज़ का आनंद ले सकते हैं.
टीवी पर इनका आनंद लेने के लिए या तो आपका टीवी ‘स्मार्ट-टीवी’ होना होगा या फिर आपको ऐसे किसी डिवाइस की ज़रूरत होगी जो आपके टीवी को स्मार्ट-टीवी में बदल दे.
स्मार्ट-टीवी मने ऐसा टीवी जिसमें आप स्मार्ट-फोन की तरह ही एप डाउनलोड कर सकते हैं और स्मार्ट-फोन की तरह ही उस एप में जाकर वीडियो भी देख सकते हैं. हां ये स्मार्ट-टीवी इंटरनेट से भी कनेक्टेड होना चाहिए.
और हां, अगर आपका टीवी एक स्मार्ट-टीवी नहीं है तो भी आप अपने टीवी में वीडियो स्ट्रीमिंग कर सकते हैं. इस दशा में आपके टीवी में एक यूएसबी पोर्ट होना ज़रूरी है. जिसमें आप अमेज़न-फ़ायर या फिर क्रोमकास्ट जैसी ‘पेन ड्राइव’ सी दिखने वाली डिवाइस लगा सकते हैं और आपका टीवी एक स्मार्ट-टीवी की तरह कार्य करने लगेगा.
अमेज़न फ़ायर और क्रोमकास्ट
इन्हें स्ट्रीमिंग डिवाइस भी कहा जाता है और ये बहुत सस्ते में आपके नॉर्मल टीवी को स्मार्ट-टीवी में बदल देती हैं.
3)  सब्सक्रिप्शन 
सारी टेक्निकल चीज़ों के अलावा वीडियो देखने-दिखाने के पुराने तरह के संसाधनों और ‘वीडियो स्ट्रीमिंग’ के बीच सबसे बड़ा अंतर विज्ञापनों का भी है. जहां टीवी में बीच में आपको ढेरों विज्ञापन देखने पर विवश होना पड़ता है वहीं अगर ‘वीडियो स्ट्रीमिंग’ की बात करें तो, यहां पर विज्ञापन ‘नहीं’ से लेकर ‘सीमित’ तक होते हैं.  इसका कारण है कि आपको इन सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए हर महीने एक निश्चित धनराशी इन वीडियो सेवा प्रदाताओं को देनी होती है. इसे ही ‘सब्सक्रिप्शन’ फीस कहा जाता है.
और ‘सब्सक्रिप्शन’ फीस ही दरअसल इन सर्विस प्रोवाइडर्स के ‘रेवेन्यू मॉडल’ का सबसे बड़ा हिस्सा है. मने जहां सिनेमा हॉल की कमाई टिकट की बिक्री और टीवी की कमाई विज्ञापनों से होती है वहीं वीडियो स्ट्रीमिंग की आय का सबसे बड़ा साधन सब्सक्रिप्शन है. और जहां पर सब्सक्रिप्शन नहीं देना है वहां पर या तो आपको विज्ञापन दिखेंगे (जैसे यू ट्यूब में) या फिर आपको हर फ़िल्म या हर शो के लिए अलग से पेमेंट करना होगा. (जैसे एचबीओ की स्ट्रीमिंग सर्विस). ये अलग से पेमेंट करने के ऑनलाइन रेंटिंग भी कही जा सकती है. ‘ऑनलाइन रेंटिंग’ मने ऑनलाइन किसी फ़िल्म या शो को किराए में लेना.
नेटफ्लिक्स का सबसे पहला लोगो
यू-ट्यूब में भी कई फ़िल्में आप ‘ऑनलाइन रेंट’ पर ले सकते हैं. और इन ‘पेड वीडियोज़’ में आपको विज्ञापन भी नहीं दिखेंगे.

# ओरिजनल्स

अब ये जो सर्विस प्रोवाइडर हैं (नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार, अमेज़न प्राइम वीडियो) ये आप तक फ़िल्में, शो और धारावाहिक दो तरह से लेकर आते हैं.
– या तो ये पहले से ही बने शो खरीद लें. या फिर खुद के शो बनाएं.
पहले से ही बने शो मतलब, वो शो/सीरीज़/फ़िल्में जो मूलतः टीवी या सिनेमा हॉल के लिए बनाए गए थे और इन शोज़ को आप किसी और प्लैटफॉर्म्स पर भी देख सकते हैं. जैसे भारत के लिए ‘गेम ऑफ़ थ्रोंस’ हॉटस्टार नामक सर्विस प्रोवाइडर में खरीदा. जबकि ये शो टीवी (एचबीओ) के लिए बनाया गया था. अमेज़न प्राइम ने ‘अक्टूबर’ नाम की मूवी खरीदी. जबकि शूजित सरकार की यह फ़िल्म बड़े पर्दे के लिए बनाई गई थी.
हाउस ऑफ़ कार्ड्स के करैक्टर्स
वहीं दूसरी तरफ ये सर्विस प्रोवाइडर अब इतने शक्तिशाली हो चले हैं कि अपने प्लेटफार्म के लिए खुद भी शो/सीरीज़/मूवी प्रोड्यूस करने का माद्दा रखते हैं. और वो ऐसा इसलिए करते हैं क्यूंकि ऐसे शो आप केवल एक जगह पर ही देख पाएंगे, यानी इनके प्लैटफॉर्म्स पर.
अगर ऐसे शो बेहतरीन हुए तो आपके पास इन सर्विस प्रोवाइडर्स का सब्सक्रिप्शन लेने के अलावा कोई विकल्प न बचेगा, जैसे ‘हाउस ऑफ़ कार्ड्स’ और ‘नार्कोज़’ आपको नेटफ्लिक्स के अलावा कहीं और देखने को नहीं मिलेगा. क्यूंकि ये नेटफ्लिक्स ने खुद बनाए हैं. खुद का पैसा लगाकर. कहा तो ये जाता है कि ‘हाउस ऑफ़ कार्ड्स’ ने रातों-रात नेटफ्लिक्स की किस्मत बदल दी.
हो सकता है कि बाद में इसकी डीवीडी आएं या टीवी वगैरह में भी दिखाया जाए. लेकिन अभी और सबसे पहले ये नेटफ्लिक्स में ही आए. ‘एक्सक्लूसिवली’. इन्हें नेटफ्लिक्स वाले नेटफ्लिक्स ओरिजनल और प्राइम वाले प्राइम ओरिजनल कहते हैं.

# नेटफ्लिक्स –

तो ऊपर की बातों से और आजकल चल रहे बज़ से हमें पता है कि भारत में नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, हॉटस्टार कुछ सबसे बड़े ऑनलाइन मीडिया सर्विस प्रदाता हैं.
लेकिन क्या आपको पता है कि नेटफ्लिक्स पूरी दुनिया में भी सबसे बड़ी ऑनलाइन मीडिया सर्विस प्रोवाइडर है.
नार्कोज़
नेटफ्लिक्स की शुरुआत हुई थी साल 1997 में. तब ये किराए पर डीवीडी उपल्बध करवाती थी. तब इंटरनेट था नहीं. जब एक पहचान बन गई, तो मेल के द्वारा डीवीडी घर-घर पहुंचाने का काम शुरू कर दिया. इस बिज़नेस आइडिया से इनकी धमक घर-घर तक पहुंच गई. मार्केट में पांव जम गया. फिर शुरू हुआ वीडियो ऑन डिमांड यानी जो प्रोग्राम जब देखना चाहें, तब देखें वाली सर्विस.
जैसे टीवी पर होता है न कि ‘सूर्यवंशम’ 12 बजे सेट मैक्स पर आएगी, तभी देख लो वरना ठाकुर भानू प्रताप को जहर वाली खीर खाते नहीं देख पाओगे. नेटफ्लिक्स ने ये दिक्कत दूर कर दी. जब जो चाहो देखो.
इस सर्विस के बाद इनके यूज़र बढ़ने लगे. फिर शुरू हुआ वो काम जिसके बदौलत आज इसके नाम की माला जपी जाती है. 2007 में इन्होंने स्ट्रीमिंग सर्विस शुरू की. लेकिन इनके लिए बड़े बदलाव का साल रहा 2012. इस साल नेटफ्लिक्स ने अपनी पहली सीरीज़ प्रोड्यूस की ‘लिलिहैमर’ नाम की. इसके बाद से वो सीरीज़ और फिल्म प्रोडक्शन करने लगे. इंटरनेट क्रांति इनके लिए बहुत मददगार साबित हुई और लोगों ने देखना शुरू किया. कंटेंट पसंद आ गया. इसके बाद आया साल 2016, जिस साल ये लोग सबसे ज़्यादा ओरिजनल कंटेंट देने वाले चैनल/नेटवर्क बन गए. उस साल इनकी तकरीबन 126 फिल्में/सीरीज़ रिलीज़ हुईं. इससे हुआ भयानक फायदा और अप्रैल 2018 तक इनके दुनियाभर में तकरीबन 12.8 करोड़  सब्सक्राइबर बन गए.
अभी एप्पल के आई फोन ने एक डेटा ज़ारी किया था, कि सबसे ज़्यादा कौन सा एप डाउनलोड होता है. एप था फेसबुक. लेकिन एक और लिस्ट भी थी, जिसपर कम ही लोगों का ध्यान गया होगा – सबसे ज़्यादा कमाई करने वाला एप कौन सा है. और इस लिस्ट में टॉप पर था – नेटफ्लिक्स.
नेटफ्लिक्स की वेबसाइट
अभी हाल ही में इन्होंने जियो को धन्यवाद किया था. और क्यूं किया था ये बताने की ज़रूरत नहीं.
और आज हम इसलिए इसकी बात कर रहे हैं क्यूंकि इन्होंने भारत में भी पैर जमाने शुरू कर दिए हैं. 2015 तक तो लोग-बाग ये कह रहे थे कि नेटफ्लिक्स कभी भारत नहीं आएगा, या निकट भविष्य में नहीं आएगा. लेकिन 2016 के आते-आते ये भारत में आ गया. और अभी जुम्मा-जुम्मा दो साल भी नहीं हुए कि भारत के लिए भी एक ‘एक्सक्लूसिव’ सीरीज़ शुरू कर दी – ‘सेक्रेड गेम्स’.
भारतीय कलाकार, भारतीय निर्देशक, भारतीय पृष्ठभूमि. और निर्माता – नेटफ्लिक्स.


यह सेवा हासिल करने के लिए भारत में अभी आपको हर माह करीब 10 डाॅलर का भुगतान करना होगा. रीड हैस्टिंग के मुताबिक,  यह 500 रुपये से ज्यादा नहीं होगा. हालांकि, यह शुल्क केवल नाॅर्मल व्यू के लिए है. यदि आप एचडी प्लान लेना चाहते हैं, तो 650 रुपये मासिक और अल्ट्रा एचडी के लिए 800 रुपये मासिक का भुगतान करना होगा. बेसिक प्लान के माध्यम से आप एक समय में एक ही स्क्रीन पर दिये गये समय के मुताबिक कार्यक्रम देख सकते हैं. 
 
इसके अलावा स्टैंडर्ड प्लान के जरिये आप दो और प्रीमियम प्लान के माध्यम से चार चीजों को एक साथ देख सकते हैं. इन सब के माध्यम से आप अपने लैपटाॅप, टेलीविजन, स्मार्टफोन और टेबलेट पर स्ट्रीमिंग कर सकते हैं. हालांकि, इसके लिए आपको क्रोमकास्ट और रोकू जैसे डोंगल की जरूरत होगी, जिसे आपकी डिस्प्ले स्क्रीन के साथ प्लग कर दिया जायेगा.
 
कंपनी ने यह भी घोषणा की है कि भारत में इसकी सर्विस लेनेवाले उपभोक्ताओं को पहले महीने इसे फ्री में मुहैया कराया जायेगा. हालांकि, इसके साथ कुछ सेवाशर्तों को जोड़ा गया है. 
 
मसलन भुगतान किसी अधिकृत कार्ड के माध्यम से ही करना होगा. साइनअप करते समय आपको यह स्पष्ट करना होगा कि आपकी उम्र 18 वर्ष से ज्यादा है, ताकि सभी प्रकार के सेंसर्ड कंटेंट तक आपकी पहुंच हो सके. नेटफ्लिक्स प्रोफाइल क्रिएट करते समय पहचान स्पष्ट करना इसलिए जरूरी बनाया जा रहा है, ताकि बच्चों की पहुंच से इसे दूर रखने में मदद मिल सके.  
 
कंपनी के मुताबिक, इस सेवा का इस्तेमाल करते हुए एचडी स्ट्रीमिंग पर एक घंटे में करीब 3 जीबी डाटा की खपत करता है. नॉर्मल वीडियो के लिए यह सेवा प्रति घंटे 300 से 700 एमबी डाटा खर्च करती है. 4के अल्ट्रा स्ट्रीमिंग के लिए आपको बेहद तेज इंटरनेट की जरूरत होगी.  
 
भारत में बड़े बाजार की उम्मीद 
 
ऑन डिमांड  वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस के लिए भारत में भविष्य में बड़े बाजार की  उम्मीदों के बीच इस क्षेत्र में अनेक कंपनियां आ रही हैं. ‘बीबीसी’ की एक  रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 2000 फिल्मों की लाइब्रेरी वाली कंपनी इरोस  इंटरनेशनल भी कुछ ऐसी ही सर्विस मुहैया करा रही है. इरोस की कोशिश होगी कि  वह बॉलीवुड और दूसरी भारतीय भाषाओं की फिल्में ऑनलाइन देखनेवालों में अभी  से ही अपनी पैठ कायम कर सके. 
 
इरोस की टक्कर नेटफ्लिक्स के लिए बहुत कड़ी हो  सकती है, क्योंकि कंपनी सालभर में करीब 70 फिल्में रिलीज करती है. यह कंपनी  अपने दर्शकों को फिल्म रिलीज होते ही उन्हें ऑनलाइन मुहैया कराने की  सुविधा भी दे सकती है. दरअसल, भारत ऐसा बाजार है, जहां सभी भाषाओं में हर साल करीब 800 फिल्में बनती हैं. दुनिया के किसी भी देश में इतनी  फिल्में नहीं बनतीं. दूसरी ओर यहां स्मार्टफोनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और चीन के बाद भारत में मोबाइल फोन इस्तेमाल करनेवाले लोग सबसे ज्यादा हैं. 
 
बॉलीवुड फिल्में देश ही नहीं दुनियाभर में मशहूर हैं और भारत की  कंपनियों को लगता है कि दुनियाभर का ऑनलाइन फिल्म बाजार उनके लिए खुल सकता  है. इन सभी की पहली नजर आपके स्मार्टफोन पर है कि आप कितनी देर तक वीडियो  देखते हैं. नेटफ्लिक्स का भारत आना अपनेआप में भारतीय  ऑनलाइन बाजार की अहमियत दिखाता है.





नेटफ्लिक्स का अब तक का सफर 
 
- 1997 - रीड हैस्टिंग्स ने साॅफ्टवेयर एग्जीक्यूटिव मार्क रैंडोल्फ की मदद से नेटफ्लिक्स की स्थापना की और आॅनलाइन मूवी को रेंट पर मुहैया कराने का काम शुरू. 
-1998 - नेटफ्लिक्स ने डीवीडी को किराये पर मुहैया  कराने  और बेचने के लिए  पहला वेबसाइट शुरू किया, जिसे नेटफ्लिक्स डाॅट काॅम नाम दिया. 
-1999 - कंपनी ने सब्सक्रिप्शन सर्विस शुरू की और मासिक निर्धारित कीमत के आधार पर डीवीडी रेंट पर देना शुरू किया. 
- 2000 - कंपनी ने पर्सनलाइज्ड मूवी रिकोमेंडेशन सिस्टम की शुरुआत की, जो इसके सदस्यों की रेटिंग करता है और उनकी च्वाॅइस का अनुमान लगाता है. 
- 2002 - नेटफ्लिक्स ने इसे औपचारिक पब्लिक प्रस्ताव के रूप में परिवर्तित किया. अमेरिका में छह लाख सदस्यों के साथ इसका आइपीओ नेसडेक के अधीन आया. 
- 2005 - नेटफ्लिक्स के सदस्यों की संख्या बढ़ कर 4.2 मीलियन तक पहुंची.
- 2007 - कंपनी ने स्ट्रीमिंग सेवा शुरू की, जिससे इसके सदस्य अपने पर्सनल कंप्यूटर्स पर तत्काल टीवी शो और मूवीज देखने में सक्षम हुए. 
- 2008 - एक्सबाॅक्स 360, ब्लू-रे डिस्क प्लेयर्स और टीवी सेट-टाॅप बाॅक्सेज के साथ स्ट्रीम होने के लिए नेटफ्लिक्स ने कंज्यूमर इलेक्ट्राॅनिक्स कंपनियों के साथ साझेदारी की. 
- 2009 - पीएस3, इंटरनेट कनेक्टेड टीवी और अन्य इंटरनेट कनेक्टेड डिवाइस के साथ स्ट्रीम होने के लिए कंपनियों के साथ साझेदारी. 
- 2010 - एप्पल आइपैड, आइफोन और आइपाॅड टच और अन्य इंटरनेट कनेक्टेड डिवाइस पर नेटफ्लिक्स मुहैया कराया गया. कनाडा में सर्विस लाॅन्च. 
- 2011 - लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाइ देशों में सर्विस लाॅन्च. 
- 2012 - यूरोप में नेटफ्लिक्स का प्रवेश. यूके और आयरलैंड में शुरू. 
- 2013 - अनेक कार्यक्रमों और शो के जरिये नेटफ्लिक्स का अनेक देशों में विस्तार किया गया. इंटरनेट टीवी नेटवर्क मुहैया कराने के लिए कंपनी को अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए. 
- 2014 - यूरोप के छह देशों- आॅस्ट्रिया, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, लग्जम्बर्ग और स्विट्जरलैंड में इसकी शुरुआत. दुनियाभर में इसके पांच करोड़ सदस्य हुए. 
- 2015 - यूरोप में इटली, स्पेन और पुर्तगाल समेत आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान में सेवा शुरू की गयी. नेटफ्लिक्स की पहली आॅरिजनल फीचर फील्म ‘बीस्ट्स आॅफ नो नेशन’ को प्रदर्शित किया गया. 
- 2016 - वैश्विक स्तर पर नेटफ्लिक्स की उपलब्धता मुहैया कराने पर जोर.
(स्रोत : नेटफ्लिक्स) 
भारत में आसान नहीं नेटफ्लिक्स की राह
- प्रकाश कुमार रे 
 
भा रत में नेटफ्लिक्स का प्रवेश भले ही प्रचार के शोर-शराबे के साथ न हुआ है, पर  यह एक बड़ी अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी का आगमन है और इसे लेकर उत्सुकता  अकारण नहीं है. 
 
अमेरिका और अनेक पश्चिमी देशों में मनोरंजन के उपभोग में  आमूल-चूल बदलाव लानेवाली इस ऑनलाइन सेवा की राह भारत में आसान नहीं होगी.  हमारे यहां इंटरनेट सेवाओं की स्पीड अमेरिका और अन्य कई देशों की तुलना में  बहुत ही कम है तथा 4जी की आमद के बावजूद इसमें बहुत जल्दी किसी बेहतरी की  संभावना नहीं दिखाई देती है.   
 
टेलीकॉम टॉक के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 45  फीसदी इंटरनेट यूजर्स के पास एक से तीन एमबी प्रति सेकेंड की स्पीड का  कनेक्शन है. 30 फीसदी यूजर्स एक एमबी प्रति सेकेंड से कम स्पीड वाले  कनेक्शन से काम चलाते हैं और 50 एमबी प्रति सेकेंड से अधिक स्पीड का कनेक्शन रखनेवालों की संख्या एक फीसदी से भी कम है. सामान्यतः नेटफ्लिक्स  की हाइ डेफिनिशन सेवाओं का समुचित ढंग से आनंद उठाने के लिए उपभोक्ता के  पास आठ एमबी प्रति सेकेंड स्पीड का कनेक्शन और 100 जीबी प्रति माह का डाटा  होना चाहिए. ऐसे कनेक्शन के लिए दो हजार से अधिक शुल्क की सेवाएं लेनी होंगी. इस सेवा के लिए नेटफ्लिक्स की दरें भी अधिक हैं. 
 
विभिन्न टेलीकॉम  सेवा प्रदाताओं के शुल्कों के आधार पर आकलन करें, तो साधारण गुणवत्ता के  साथ एक फिल्म देखने में 40 से 60 रुपये का खर्च आ सकता है, और यह खर्च नेटफ्लिक्स के सबसे कम 500 रुपये प्रतिमाह के शुल्क के अतिरिक्त है.  अमेरिका में मोबाइल सेवाएं आम तौर पर 20-25 जीबी डाटा उपभोग से पहले गति को  सीमित नहीं करती हैं. 
 
इसी तरह से अधिकतर कंपनियों द्वारा ब्रॉडबैंड में  अधिकतम डाटा उपभोग की सीमा भी निर्धारित नहीं होती. वहां ब्रॉडबैंड की  स्पीड 50 से 500 एमबी प्रति सेकेंड के बीच होती है. ऐसे में 100 से 512  केबी प्रति सेकेंड की भारतीय सेवाओं में नेटफ्लिक्स को जमने में बड़ी  मुश्किल होगी. हालांकि इंटरनेट स्पीड से जुड़ी मुश्किलें काफी हद तक दूर हो सकती थीं,  यदि नेटफ्लिक्स वीडियो डाउनलोड की सुविधा देता. उम्मीद है कि कंपनी  देर-सबेर इस संबंध में कोई सकारात्मक निर्णय लेगी. 
 
भारत में डीटीएच का  व्यापक प्रसार है और इस क्षेत्र में सक्रिय कंपनियां लगातार सेवाओं को बेहतर और इंटरएक्टिव बना रही हैं. वीडियो और टेलीविजन कंपनियां भी अपने  एप्प ला रही हैं. नेटफ्लिक्स पर भारतीय भाषाओं में सामग्री बढ़ने के लिए  लोगों को अभी इंतजार करना होगा. इस माहौल में कठिन प्रतिस्पर्धा से  नेटफ्लिक्स को जूझना होगा. सेवाओं की शुरुआत के साथ ही कई तकनीकी दिक्कतों  से भी ग्राहक नाराज हैं और इसे जल्दी नहीं सुधारा गया, तो प्रारंभिक उत्साह  का लाभ नेटफ्लिक्स नहीं उठा सकेगा. 
 
बहरहाल, इतना जरूर कहा जा सकता है कि  नेटफ्लिक्स के आने से मनोरंजन के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे  सेवाओं के अच्छे और सस्ते होने की उम्मीद की जा सकती है. ऐसे माहौल में  टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं को भी दरों में संशोधन करना पड़ सकता है. नेटफ्लिक्स को जमने के लिए काफी कोशिश करनी होगी. शायद यही कारण है कि उसने  बिना किसी बड़े हंगामे के साथ भारतीय बाजार में कदम रखा है.
 
इस सेवा से जुड़े कुछ प्रमुख तथ्य 
 
-  नेटफ्लिक्स ने पहले माह फ्री सर्विस मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया है,  लेकिन इसके लिए आपके पास क्रेडिट कार्ड होना जरूरी है. ‘इंडिया टुडे डाॅट  इन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेवा लेते समय आपको क्रेडिट कार्ड का विवरण  देना होगा, जिसमें आपको रकम चार्ज नहीं की जायेगी, लेकिन एक माह के बाद  सब्सक्रिप्शन को मैनुअली डिएक्टिवेट करना होगा. 
 
-  नेटफ्लिक्स का कहना  है कि भारत में उसके किसी भी कंटेंट पर सेंसर नहीं है. उन लोगों के लिए यह  अच्छी खबर हो सकती है, जो सेंसर किये गये कंटेंट को नहीं देख पाते हैं,  लेकिन हाउस आॅफ कार्ड्स जैसे नेटफ्लिक्स के कुछ ओरिजनल शो को भारत में लोग  नहीं देख पायेंगे, क्योंकि यहां इसका लाइसेंस अन्य कंपनी के पास है. 
 
-  फिलहाल इसकी लाइब्रेरी में ज्यादा कंटेंट नहीं है. उदाहरण के तौर पर,  साइंस फिक्शन सेक्शन की ही बात करें, तो इसमें कुल मिला कर केवल 32 टाइटल्स  ही मौजूद हैं. यहां तक कि इसमें एक भी सिंगल स्टार वार्स मूवी नहीं है.  ‘मैन फ्राॅम द यूएनसीएलइ’ जैसी लोकप्रिय मूवी भी इसमें उपलब्ध नहीं है,  जबकि भारत में अन्य सर्विस प्रोवाइडर के पास यह मूवी मौजूद है. इसी तरह यदि  आप गेम आॅफ थ्रोन्स जैसे शो देखना चाहते हैं, तो इसे आप नहीं देख पायेंगे.  दरअसल, यह शो एचबीओ का एक्सक्लूसिव है. 
 
- नेटफ्लिक्स का कहना है कि  स्मूथ स्ट्रीमिंग के लिए 5 एमबीपीएस कनेक्शन का होना जरूरी है. यदि इतनी  स्पीड नहीं है, तो फिर आपके लिए यह महंगा साबित हो सकता है. 
 
नेटफ्लिक्स के कर्ता-धर्ता
 
रीड ने वर्ष 1991 में प्योर साॅफ्टवेयर की स्थापना की, जो साॅफ्टवेयर डेवलपर्स के टूल्स बनाती थी. 1995 में एक आइपीओ और कुछ अधिग्रहणों के बाद वर्ष 1997 में प्योर को नेशनल साफ्टवेयर ने अधिग्रहित कर लिया. इसी वर्ष रीड ने नेटफ्लिक्स की स्थापना की. रीड एक सक्रिय शिक्षाविद हैं और कई सालों तक इन्होंने स्टेट एजुकेशन बोर्ड में अपनी सेवाएं दी है. 1988 में वे स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में एमएससीएस की डिग्री हासिल कर चुके हैं.   
 
टावनी क्रांज, चीफ टेलेंट आफिसर
 
वर्ष 2007 में टावनी बतौर डायरेक्टर इस कंपनी से जुड़ीं और 2012 में इन्हें चीफ टेलेंट आफिसर की जिम्मेवारी सौंपी गयी. उसके बाद से वे कंपनी की संबंधित जिम्मेवारियों का निर्वहन कर रही हैं. यूनिवर्सिटी आॅफ कैलिफोर्निया से साइकोलाॅजी में बीए और मैनेजमेंट की डिग्री हासिल करने के बाद वे इस प्रोफेशन से जुड़ीं.

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