कंप्यूटर का इतिहास ( History of Computer )
हालाँकि आधुनिक कम्प्पूटरों को अस्तित्व में आये हुए मुश्किल से 60 वर्ष ही हुए है , लेकिन उनके विकास का इतिहास बहुत पुराना है। कंप्यूटर का जो रूप हम आजकल देख रहे है , वह हजारों वर्षों की वैज्ञानिक खोजों और चिंतन का फल है| पुराने समय में मनुष्य अपने पशुओं की गणना अपने आसपास की वस्तुओं: जैसे- पत्थर,हड्डियां ,उँगलियों आदि की सहायता से किया करता था | धीरे -धीरे उसने गणनायें :जैसे - जोड़ना , घटना , गुणा करना आदि सीखा | गणनाओं की मात्रा और जटिलता बढ़ने पर गणना में सहायक यंत्रों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी | इसके परिणामस्वरूप सबसे पहले गिनतारा (अबेकस) अस्तित्व में आया और बाद में भी कई यंत्रो का निर्माण किया गया।
गिनतारा Abacus
यह पहला और सबसे सरल यंत्र है , जिसका उपयोग गणना करने में किया गया था। इसका इतिहास 3000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। आश्चर्य की बात यह है कि गिनतारा आजकल भी अपने प्रारम्भिक रूप में ही रूस , चीन , जापान, पूर्वी एशिया के देशों तथा भारत में भी कुछ स्कूलों में प्रयोग किया जाता है।
गिनतारा लकड़ी का एक आयताकार ढांचा होता है , जिसमें 8 या 10 क्षेतिज (Horizontal) छड़ें होती है। प्रत्येक छड़ में 6 दाने या मनके होते हैं , जिन्हें एक अन्य लंबवत छड़ द्वारा इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि एक ओर 5 मनके हो तथा दूसरी ओर केवल एक मनका हो। अकेला मनका संख्या 5 को व्यक्त करता है तथा दूसरी ओर का प्रत्येक मनका संख्या 1 को व्यक्त करता है। मनकों को छड़ो पर विभाजक छड़ की ओर अथवा उससे दूर खिसका कर गणनाएं की जाती है। कहा जाता है कि गिनतारा का नियमित उपयोग करने वाले व्यक्ति आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक डेस्क कैलकुलेटर से भी ज्यादा शीघ्र गणनाएँ कर लेते हैं।
नेपियर बोन Napier's Bones
स्कॉटलैंड के गणितज्ञ जॉन नेपियर ने सन 1617 में कुछ ऐसी आयताकार पट्टियों का निर्माण किया था , जिनकी सहायता गुणा करने की क्रिया अत्यंत शीघ्रतापूर्वक की जा सकती थी। ये पट्टियां जानवरों की हड्डियों से बनी थीं , इसलिए इन्हें नेपियर बोन कहा गया। ये कुल 10 आयताकार पट्टियां होती हैं , जिन पर क्रमश: 0 से 9 तक के पहाड़े इस प्रकार लिखे होते हैं कि एक पट्टी के दहाई के अंक दूसरी पट्टी के इकाई के अंकों के पास आ जाते हैं। इन पट्टियों का विवरण नेपियर की मृत्यु के बाद ही संसार के सामने आया था।
स्लाइड रूल Slide Rule
जॉन नेपियर ने सन 1617 में गणनाओं की लघुगणक (Logarithm) विधि का आविष्कार कर लिया था। इस विधि में दो संख्याओं का गुणनफल , भागफल, वर्गमूल आदि किसी चुनी हुई संख्या के घातांको को जोड़कर या घटाकर निकाला जाता है। आज भी बड़ी -बड़ी गनाओ में यहाँ तक की कप्यूटर में भीइस विधि का प्रयोग किया जाता है। सन १६२० में जर्मनी के गणितज्ञ विलियम ओटरेड ने स्लाइड रूल नामक ऐसी वस्तु का अविष्कार जो लघुगणक विधि के आधार पर सरलता से गणनाये कर सकती थी। इसमें दो विशेष प्रकार से चिन्हित पट्टियां होती है , जिन्हें बराबर आगे - पीछे सरकाया जा सकता है। इन पर चिन्ह इस प्रकार पड़े होते है कि किसी संख्या की शून्य (Zero ) वाले चिह्न से वास्तविक दुरी उस संख्या के किसी साझा आधार पर लघुगणक के समानुपाती होती है।
स्लाइड रूल का उपयोग वैज्ञानिक गणनाओं में कई शताब्दियों तक किया जाता रहा। बीसवीं शताब्दी के आठवें दशक में इलेक्ट्रॉनिक पॉकेट कैलकुलेटरों के अस्तित्व में आ जाने के बाद ही इनका प्रयोग बंद हुआ है।
पास्कल का गणना यंत्र Pascal's Calculator
लेबनिज का यांत्रिक कैलकुलेटर Mechanical Calculator of Leibnitz
बैबेज का ऐनालिटिकल इंजन Analytical Engine of Babbage
जोसेफ - मेरी जैकार्ड (1752 - 1834)फ़्रांस का एक बुनकर और टेक्सटाइल इंजिनियर था सन् 1801 में उसने एक ऐसी बुने मशीन का निर्माण किया , जिसमें बुनाई की डिजाईन डालने में छिद्र किये हुए कार्डो का उपयोग किया जाता था। ये कार्ड एक अंतहीन श्रृखला में एक के बाद एक बार-बार आते रहते थे , इसीलिए वह कार्डो पर किये हुए छिद्रों के अनुसार बुनाई की डिज़ाइन डालने में समर्थ हो जाता था। आधुनिक कंप्यूटरों के संदर्भ में हम कह सकते है कि बुनाई की डिज़ाइन का इनपुट उन कार्डो पर था।
जैकार्ड की इस खोज का सही महत्व काफी समय बाद चार्ल्स बैबेज ने पहचाना। वास्तव में उन्होंने अपने एनालिटिकल इंजन की जो डिज़ाइन तैयार की थी , उसमें इनपुट देने का कार्य छिद्र किये हुए कार्डो द्वारा ही किया जाना था।
चार्ल्स बैबेज के इस विचार को कार्यन्वित किया - अमेरिका के डॉ. हर्मन होलेरिथ ने। वे अमेरिका के जनगणना विभाग में थे। अमेरिका में सन् 1880 की जनगणना का सारा कार्य हाथ से किया गया था। जिसमें कई वर्ष लग गए थे।
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