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The 4 hour Work Week

Four Hour Work Week in Hindi | Book Summary in Hindi
Four Hour Work Week in Hindi | Book Summary in Hindi


The 4 hour work week. इस किताब में ऑथर Timothy Ferriss ने हमको बताया है की कैसे हम अपनी जॉब करते हुए खुद का बिज़नेस स्टार्ट कर सकते है और ये बिज़नेस ऐसा होगा की इसमें आपकी मेहनत जॉब से कम लगेगी पर इनकम जॉब से ज्यादा होगी।

इस पोस्ट के अंत तक आपको एक अच्छा खासा अनुमान लग जायेगा की ऐसा बिज़नेस स्टार्ट करना है। ये बुक सबसे पहले वेल्थ , या धन दौलत को लेकर हमारी जो सोच है उसको Redefine करती है।  हम generally वेल्थ को पैसे से नापते है मतलब अगर कोई इंसान ज्यादा पैसे कमा रहा है तो हम उसको ज्यादा अमीर मानते है और कम पैसे कमाने वाले को कम अमीर मानते है। पर असल में इस तरह का नजरिया एक छोटा नजरिया होता है। 

असल में  केवल पैसे का अमाउंट ये नहीं बताता की कोई कितना अमीर है।  पैसों के अलावा दो और फैक्टर्स हैं। जो हमे किसी भी इंसान की वेल्थ की एक साफ तस्वीर देते हैं। इन दो फैक्टर्स के नाम हैं Time और Mobility 

आज की इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की ऐज में केवल पैसे की करेंसी नहीं , बल्कि पैसा , समय और  घूमने की आजादी आपको आमिर बनाती है। एक अकाउंटेंट के पास पैसा तो आ रहा है। पर काम ज्यादा है की अपनी पसंद का कोई काम करने के लिए टाइम ही  नहीं है।  अगर वो ऑफिस छोड़ कर चली जाये तो ऑफिस का काम ही रुक जाए।

एक टेक्निकल सपोर्ट वाले के पास काम ज्यादा नहीं है , कभी कोई प्रॉब्लम आती है तभी उसको बुलाया जाता है। पैसे भी मिल ही जाते है पर अगर वो ऑफिस छोड़ कर चला जाये और तब कोई इशू आ जाये तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो सकती है। वही एक ऑनलाइन कोचिंग देने वाला टीचर किसी भी जगह से कॉचिंग दे सकता है , रिकॉर्डेड लेक्टर्स बेच कर हमेशा कमाता रह सकता है , और चाहे बस तो एक बार कोर्स तैयार कर काम ना भी करे तब भी कमा सकता है। 

ये बुक DEAL नाम की प्रोसेस बताती है। DEAL असल में 4 स्टेज है जिनसे हो के हमे गुजरना है। 

D मतलब Definition 

E मतलब की Elimination 

A मतलब की Automation और 

L मतलब की Liberation 

अब आगे हमारी पोस्ट इन्हीं चार स्टेजेस को डिटेल में एक्स्प्लोर करेगी। 

1. पहली स्टेज Definition है 

डेफिनिशन का मतलब होता है परिभाषा इस स्टेज में हम बहुत सी चीज़ों को परिभाषित , या डिफाइन करेंगे। इससे हमारे दिमाग में चीज़ों को लेकर जो क्लैरिटी आएगी। वो हमे सही डायरेक्शन में चलते रहने के लिए मदद करेगी। हमारे दिमाग में कुछ ऐसे Assumptions होते है जो हमे आगे बढ़ने से रोकते है।  तो ऐसे Assumptions को इस स्टेज में हम खत्म करेंगे। 
 
पहला पॉइंट Money is not looking for. मतलब पैसा वो चीज नहीं है जो आप ढूंढ रहे हैं। हम खुश रहने की चाह में पैसे के लिए भागते रहते है। हम बहुत मेहनत करते है ताकि हमारी इनकम बढ़ती रहे। 
 
पर जब हमारी इनकम बढ़ती है तो हम देखते है की हमारी खुसी हमारी इनकम के साथ बढ़ नहीं रही। हमारी समझ में नहीं आता की लाइफ जा कहाँ रही है ? हम कर क्या रहे है और क्यों कर रहे है। इसका रीज़न यही है की हमारी लाइफ में ख़ुशी पैसे से नहीं बल्कि फ्रीडम और पावर से आती है। हम खुश तभी रहते है जब हम वो सब कुछ कर पाए जो करना चाहते हैं।
बहुत सी चीज़ें ऐसी होती है जो केवल तभी की जा सकती है जब आपके पास पैसा , हो पर सभी चीज़ें ऐसी नहीं होती। इसके बाद हमारी सोसाइटी में बहुत से गलत Beliefs या मान्यताये चली आ रही हैं। सोसाइटी का एक बड़ा हिस्सा इन गलत beliefs को मानता है। जैसे लोगो के beliefs या सोच होती है वैसे जीवन वो जीते है। हमको अगर आगे जाना है तो हमको आम लोगो से थोड़ा अलग सोचना पड़ेगा। 

सबसे पहली सोच है रिटायरमेंट को लेकर दुनिया में रिटायरमेंट का कांसेप्ट ही गलत सोच पर आधारित है। रिटायरमेंट का कांसेप्ट ये मान के चलता है की जो जॉब या काम आप कर रहे हो वो आपको बिलकुल पसंद नहीं है। 
आप वो काम बिलकुल भी नहीं करना चाहते और इसलिए बस एक बार आपके पास इतना पैसा हो जाये की आपको काम करने की जरूरत ही ना पड़े फिर आप आराम से घर बैठेंगे , और कोई भी काम नहीं करेंगे। इस सोच में सबसे पहली गलत बात तो ये है की इतना पैसा इखट्टा कर लो जो जीवन भर खत्म ही ना हो , तो ये बात एक दम इम्पॉसिबल है।
और दूसरी बात हम ये मान कर चल रहे है की हमको कोई भी काम नहीं करना है और बस बैठे रहना है तो ये बात भी सुनने में तो अच्छी लगती है पर आप किसी भी इंसान को बिना किसी काम के कुछ महीने तक बिठा के देख लीजिये।  किसी को कितना भी आराम देदो पर अपना मन लगाने  के लिए कच न कुछ काम होना जरूरी होता है। 
 
बैठे-बैठे कुछ दिन तो अच्छा लगता है ,फिर बोरियत होने लगती है ,फिर वो बोरियत फ़्रस्ट्रेशन का रूप ले लेती और फ़्रस्ट्रेशन डिप्रेशन तब्दील हो जाता है. इसीलिए रिटायरमेंट की तरफ आशा लगाने का कोई मतलब नहीं है। 
तो फिर इसका solution क्या है ? इसका solution सिंपल सा है काम वो करो जो आपको करना पसंद है। इससे काम करने में आपका मनलगेगा। 

आप उस काम को ईमानदारी से करोगे , उसमें प्रोग्रेस करोगे और रिटायरमेंट लेने की आपको जरुरत भी नहीं लगेगी। 
रिटायरमेंट का एक और अल्टरनेटिव है मिनी रिटायरमेंट हमारे इंटरेस्ट और हमारी एनर्जी cyclical होते है। बहुत सालो तक काम करने के बाद इंसान का मन करता है की अब काम ना करे। और बहुत दिन काम ना करने पर मन करता है की अब कुछ किया जाये। 
 
इसीलिए अपने कैरियर के अंत में हमेशा के लिए रिटायरमेंट लेने कासोचने की जगह हमको हमारे कैरियर के बीच में छोटे-छोटेरिटायरमेंटलेनाचाहिए। एक छोटे रिटायरमेंट के बाद पूरी एनर्जी से फिर से काम में लग जाओ। इससे आपका इंटरेस्ट और एनर्जी दोनों बने रहेंगे। 
 
हमारी अगली गलत सोच ये है की हमकम काम करने को आलास से जोड़ देते है। Less work = Laziness 
कम काम करने वाला इंसान हमे आलसी लगता है। और दिनभर काम करने वाला इंसान हमको मेहनती लगता है। कई वर्क प्लेसेस  में एम्प्लोयी को इस बेसिस परजज किया जाताहै की वो ऑफिस में कितना टाइम बिता रहा है। 
हम ये भूल जाते है की कहानी के अंत में जो एक मात्रा चीज काम आती है वो है results . पढाई कितनी भी कर लो अगर पास ना हुए तो पढाई का कोई मतलब नहीं। 
 
product बनाने में कितनी भी मेहनत कर लो पर अगर customer को पसंद नहीं आया तो वो बिकेगा ही नहीं। पिक्चर बनाने में कितनी भी मेहनत लगी हो , ऑडियंस को अगर पसंद नहीं आई तो फ्लॉप ही होनी है। इसलिए हमारा फोकस मेहनत पर कम और results पर ज्यादा होना चाहिए। 
अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाने पर हमारा फोकस होना चाहिए। ताकि हम कम काम करके भी अच्छे results दे पाए। हमारी प्रोडक्टिविटी ज्यादा होगी हम दूसरो के जितनी ही मेहनत कर के उनसे कहीं ज्यादा आगे निकल सकते है। 
 
अगली जो हमारी सोच गलत है वो है इनकम को लेकर 
हम लोग Absolute इनकम पर फोकस करते है मतलब हम बस ये देखते है की कोई इंसान कितना कम रहा है। जो इंसान ज्यादा अमाउंट कम रहा होता है उसको हम ज्यादा अमीर मानते है। 
और जो कम कमा रहा होता है उसको हम कम अमीर मानते है। पर हमको देखना ये चाहिए की कोई इंसान कितना काम कर के कितना कमा रहा है। 
 
इस बात को मैं एक example से आपको समझाता हूँ। एक आदमी महीने के 40 हजार कमा रहा है और दूसरा 60 हजार नोर्मल्ली हम 60 हजार कमाने वाले की इनकम ज्यादा मानते है। पर अगर मैं बोलूं की 40 हजार कमाने वाला आदमी हफ्ते में केवल 5 दिन मतलब महीने में 20 दिन और 60 हजार कमाने वाला आदमी हफ्ते में 6 दिन यानि महीने में 24 दिन काम करता है। तो दोनों की per डे इनकम कितनी होगी ? 
40 हजार वाला आदमी कमा रहा है 2 हजार रुपए per डे और 60 हजार कमाने वाला व्यक्ति कमा रहा है 2500 रुपए per डे अब अगर मैं ये कहूँ की 40 हजार कमाने वाला आदमी दिन में 5 घंटे काम करता है। और 60 हजार कमाने वाला आदमी दिन में 8 घंटे काम करता है। तो अब दोनों प्रति घनता कितनी इनकम होगी ? 
अगर हिसाब लगाये तो 40 हजार कमाने वला आदमी हर घंटे 400 रुपए कमा रहा है। और 60 हजार कमाने वाला आदमी केवल 312 रुपए कमा रहा है। 
 
इस केस में 40 हजार कमाने वाले की रिलेटिव इनकम 60 हजार कमाने वाले से ज्यादा है। 
 
मान लीजिये की 40 हजार कमाने वाला व्यक्ति रिलेटिव इनकम को बढ़ाने की सोच रखता है। और 60 हजार कमाने वाला व्यक्ति absolute इनकम की सोच रखता है। तो 40 हजार वाला इंसान सोचेगा की कैसे मैं अपनी रिलेटिव इनकम को इनक्रीस करूँ ? तो वो काम तो उतना ही करता रहेगा पर उसकी इनकम बढ़ते चली जाएगी। 
 
वहीँ absolute इनकम वाले की ये सोच है की जितना काम करोगे उतना ही पैसा मिलेगा।  अब एक दिन में 24 घंटे के दिन में आप 30 घंटे काम तो कर नहीं पाओगे , इसलिए absolute इन्क्लोमे वाला व्यक्ति एक दिन कहेगा की इससे ज्यादा तो कमाया ही नहीं जा सकता। इसलिए एक दिन उसकी ग्रोथ रुकनी ही रुकनी है। 
 
फाइनली ऑथर हमें हमारे illogical डर से छुटकारा पाने की बात करते है। हम हमारी लाइफ में आधे से ज्यादा कदम तो अपने डर के कारण ही नहीं उठाते। डरना बुरी बात नहीं है। पर हम उस डर को over एस्टीमेट करते है। इसके लिए मैं आपको एक example देता हूँ।  मान लीजिये की आप कोई बिज़नस स्टार्ट करना चाहते है। या अपना करंट प्रोफेशन change करना चाहते है। आपको लगता है की ऐसा करने के लिए आपको अपनी करंट जॉब छोडनी पड़ेगी। अगर जॉब छोड़ने का एक्शन आप लेते है तो इसका कुछ आउटकम होगा , इस आउटकम को 0 से 10 के स्केल में रखते है। 
 
यहाँ 0 वो कंडीशन होगी जहाँ आपके एक्शन का कोई आउटकम नहीं निकलेगा , आपकी जिंदगी और बदतर हो जाएगी सड़क पर आने और भूखे मरने वाली कंडीशन आ जाएगी। वहीं 10 वो कंडीशन होगी जहाँ आपकी जिंदगी आपके डिसीजन के कारण पूरी तरह बदल जाएगी। और आपने जो सोचा था उससे भी अच्छे results आपके पास होंगे। 
तो हमारे साथ प्रॉब्लम ये होती है की हम पहले ही मान लेते है की अगर बुरी आउटकम आई तो हम सीधे जीरो पर पहुंचेंगे , सब बर्बाद हो जायेगा। जबकि हकीकत में results 4-5 की स्केल में ही आते है। ज्यादा से ज्यादा आप कुछ दिन के लिए जॉबलेस रहेंगे और इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा। मेरे साथ पर्सनली ऐसा हुआ है। मुझे अपने मन के प्रोफेशन में आने के लिए कुछ महीने जॉबलेस रहना पड़ा था। और अब मैं खुशी ख़ुशी अपने मन का काम कर रहा हूँ। 
 
अगर मैं पूरी लाइफ जॉबलेस रहने के डर से वहीं पुरानी जॉब कर रहा होता तो शायद आज मेरी लाइफ में सिवाय स्ट्रेस और डिप्रेशन के कुछ नहीं होता और आज आप ये पोस्ट नहीं देख रहे होते। 
 
अब हम हमारी book के दुसरे पार्ट पर आते है
 

2. DEAL की दूसरी स्टेज है Elimination

इस स्टेज में हम हर उस चीज को अपने से हटायेंगे जो हमारी मंजली तक पहुँचने से हमको रोकती है। 
जॉब के साथ कोई दूसरा काम करने के लिए आपको टाइम की बहुत जरूरत पड़ेगी। अगर आपके पास टाइम ही नहीं होगा तो आप कैसे कुछ कर पायेंगे।  तो इस पार्ट में हम उस टाइम को निकालने के तरीके देखेंगे। 

सबसे पहले टाइम मैनेजमेंट बंद करे और सीधे वो काम करे जो सबसे ज्यादाइम्पोर्टेन्ट है। यहाँ हम pareto का 80/20 principle फॉलो करेंगे। हम जो भी काम करते है उसमें से 80% काम का कोई खास रिजल्ट नहीं निकलता , केवल हमारा 20% काम ही हमको असली results देता है। इसी ब्लॉग के केस में अगर बोलूं तो मेरी पोस्ट की 80% सक्सेस मेरे पोस्ट के content से आती है। अगर script अच्छी नहीं होगी तो पोस्ट में मैं कितने भी स्पेशल images डाल लूं कितना भी सोशल मीडिया पर शेयर कर लूं , अपने फ्रेंड्स को दिखाऊ पर किसी को मेरी पोस्ट पसंद नहीं आएगी। इसीलिए मुझे केवल script पर अपना ज्यादा टाइम देना चाहिए , अगर मैं सभी चीजों पर बराबर ध्यान दूंगा तो पता नहीं मुझे कितना लग जायेगा एक पोस्ट लिखने में क्योंकि वैसे भी मेरे पास जायदा टाइम नहीं रहता है। 

इसीलिए मेन काम पर फोकस रखें बाकि चीज़ों को अपनी पेस पर चलने दे। टाइम को मैनेज करने की कोई ज़रुरत नहीं है। जैसे ही टाइम मिलता है बस उस एक इम्पोर्टेन्ट चीज को टाइम दो।
 
दूसरा point है सेलेक्टिव इग्नोरेंस का जिस वक़्त आपको ऐसा फील हो की आपका टाइम waste हो रहा है उसी वक़्त आपको रुक जाना है। कोई भी ऐसी चीज में टाइम देना ही नहीं है जो टाइम waste करे , अगर लग रहा की मूवी बोरिंग है तो कोई जरुरत नहीं है उसको आखिर तक देखने की , रोज newspaper पढ़ने की कोई जरुरत नहीं है , अगर कोई न्यूज़ आपके लिए सच में इम्पोर्टेन्ट होगी तो वो खुद व खुद आप तक पहुँच जाएगी। जबदस्ती में इन्टरनेट सर्फ करना कई घंटो तक टीवी देखना , ये सब एक्टिविटीज आपको इग्नोर करना सीखनी पड़ेगी। 

तीसरा point है interruptions से डील करने का 
 
जो काम आप पूरे फोकस के साथ 1 घंटे में निपटा सकते है। उसी काम में अगर बार बार डिस्टर्ब हो तो आराम से 3 - 4 घंटे लग जाते है। इसलिए कोशिश करें की कोई भी काम बिना डिस्टर्ब हुए करें। आपका फ़ोन आपके लिए एक बड़ा दिस्तुर्बिंग फैक्टर हो सकता है। इसलिए उसको जरूर बंद कर के काम करे। ऐसी जगह पर बैठे जहाँ लोग आकार आपको डिस्टर्ब ना कर पाए। अगर कंप्यूटर पर काम कर रहे है। तो इन्टरनेट केवल तभी यूज करे जब जरूरी हो। चौथा point है टाइम consuming एक्टिविटीज को एक साथ निपटाने का। उन सारी एक्टिविटीज का पता करें। जो है तो छोटी छोटी पर काम के बीच में आपको डिस्टर्ब कर सकती है। 

किसी को ईमेल भेजना है , किसी से फ़ोन पर बात करनी है , बाहर से कुछ खरीद के लाना है या घर का कोई छोटा सा काम। इन सब को एक बार में निपटा दें। ताकि बाद में जब आप काम करने बैठें। तो उसे बिना ख़तम किये उठाने की जरुरत ना पड़े।

अब हम आते है 

3. DEAL की तीसरी यानि ऑटोमेशन पर

इस स्टेज पर हम हमारे बिज़नस को ऑटोमेट करेंगे। मतलब की हम ऐसे बिज़नस की बसे बनायेंगे जो हमारे बिना भी खुद व खुद चल सके। इसके लिए ऑथर ने हमको सबसे पहला point दिया है outsourcing का इससे हम उन कामों की व्यवस्था करेंगे जो हमारे बिना भी हो सकते है। 
 जैसे की अभी जो आप पोस्ट पढ़ रहे है उसके लिए images , राइटिंग का काम कोई भी कर सकता है। ऐसा करने से मुझे जो फ्री टाइम मिलेगा उसे मैं कोई बिज़नस स्टार्ट करने में लगा सकता हूँ। 

तो काम अगर outsource हो सकता है। तो उसको outsource कीजिये।  यही चीज आगे जेक आपको फ्री करेगी। अगली step बहुत इम्पोर्टेन्ट है।  फाइंडिंग the muse . आपका बिज़नस आईडिया ढूंढना। हमको ऐसा product ढूँढना है जो इतना सस्ता हो की लोगो को उसको खरीदते वक़्त सोचना ना पड़े। और इसको बनाने के बाद मैनेज करने के लिए आपको हफ्ते में एक दिन से ज्यादा इसको ना देना पड़े। इस बिज़नस मॉडल पर इंडिया में Zoomcar नाम की कंपनी काम कर रही है।  उन्होंने मेट्रो सिटीज में जगह जगह साइकल्स रख दी है। जिनको उनकी एप्प के थ्रू कोई भी अनलॉक कर सकता है। 

साइकिल अनलॉक होते ही आपकी बिल्लिंग स्टार्ट हो जाती है। साइकिल के रेट्स है 3 रुपए per 10 मिनट्स। यूज करने के बाद आप साइकिल को उनके पार्किंग एरिया में खड़ा कर के साइकिल लॉक कर दीजिये , आपका जो भी बिल होगा वो वहीं के वहीं paytm से पे जो जायेगा। पार्किंग एरियाज सिटी में जगह जगह मौजूद है। अगर customer को कोई डाउट हो या प्रॉब्लम आए तो वो इनकी वेबसाइट पर जा सकता है। एक customer को जितनी भी टाइप की प्रोब्लम्स हो सकती है वो सब इन्होंने पता लगा ली है। और उन सभी प्रोब्लेम्स के solution इन्होंने अपनी साईट पर frequently asked questions के फॉर्मेट में डाल दिए है। 
इसलिए इनको customer केयर सर्विस मेन्टेन करने की जरुरत भी नहीं पड़ती। साइकल्स इन्होंने ऐसी यूज की है उनमें टूट फूट के चांसेस बहुत कम है।

ओवरआल हम बात करे तो एक बहुत ही कम maintenance वाला बिज़नस है। ये इतना सिंपल है की कोई टेक्निकल सपोर्ट की भी जरूरत नहीं है। Obviously साइकल्स में GPS सिस्टम लगा हुआ है। इस example में मैंने सारी step कवर की है। 

पर फिर भी मैं एक बार अलग से बता देता हूँ। 

Step 1 ऐसा मार्केट पता करो जो अफोर्डेबल है। जैसे 3 रूपए per 10 मिनट्स में दी जासकने वाली साइकल्स 

Step 2 brainstorm कीजिये ऐसा बिज़नस जो बिलकुल सिंपल हो जिसमें ज्यादा कॉम्प्लेक्सप्रॉब्लम आने के चांस ही ना हो। और FAQ के थ्रू customer के सारे सवालो के जवाब दिए जा सके। 

Step 3 बिज़नस को बड़े स्केल पर ले जाने से पहले उसको छोटे level पर टेस्ट करो एक सिंपल सी वेबसाइट बनाओ और गूगल Adwords और Facebook वगेरह पर उसकी मार्केटिंग करो। Customer के इनिशियल रिस्पांस को देखो और पता लगाओ की ये बिज़नस चल सकता है या नहीं अपने niche की टॉप 3वेबसाइट पर जाओ और देखो की आपका product उनसे अच्छा और अलग कैसे हो सकता है। 

Step 4 Management by Absence ऐसा सिस्टम क्रिएट करो की आपके प्रेजेंट ना होते हुए भी बिज़नस अपने आप चलता रहे। 

जैसे इस केस में customer खुद ही साइकिल ले कर जाता है।पेमेंट अपने आप होता है। और खुद ही साइकिल वापस देके भी जाता है। 

Step 5 बिज़नस केशुरुआत में सारे काम खुद ही करो जिससे की आप आपके बिज़नस के हर आस्पेक्ट को जान जाओ। इससे आप आपके customer को अच्छे से भी जान जाओगे। 

Step 6 अब जिन चीजो की जरूरत हो उनको outsource का लो अगर हुआ तो आपके FAQ से ही काम चल जायेगा पर फिर भी आपको कुछ लोग तो रखने ही पड़ेंगे। जिन लोगो को आप रख रहे है उन सभी को ये सारे FAQ समझाओ। 
 
Step 7 केवल उन 20% customer पर फोकस करो जिनसे आपका 80%बिज़नस आयेगा। सब कुछ कवर करने की कोशिश मत करो। अभी जो साइकिल rent करने वाली सर्विस की हम बात कर रहे थे उनका मेन फोकस केवल उन ही जगह पर है जहाँ ऑफिस आने जाने वाले लोग ज्यादा ट्रेवल करते है। 

4. आखिर में आती है हमारी चौथी स्टेज - Liberation

इसमें हम हमारी जॉब से , और एक ही जगह पर रहकर पैसे कमाने की बंदिश से आजाद होते है। अब जब आपने अपना छोटा सा बिज़नस स्टार्ट कर दिया है। तो अपना फोकस जॉब से कम कर के बिज़नस की तरफ ले कर जाये। अपनी company से जितनी ट्रेनिंग ले सकते है उतनी ट्रेनिंग ले इससे आप स्किल्स गेन करेंगे। जो आपके बिज़नस को आगे बढ़ाने के काम आएगी जितनी मिल सकती है उतनी छुट्टियाँ ले और उन छुट्टियों में अपनी प्रोडक्टिविटी को डबल कर के अपनी कंपनी को तेजी से बढ़ाएं। 

प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के तरीके हम पहले ही Elimination वाली स्टेज में देख चुके है। 

अगर वर्क फ्रॉम होम यानि घर से काम करने का मौका मिलता है तो उसको सही तरीके से यूज करें। अपने ऑफिस का काम जल्दी से निपटाएं और बाकी बचा हुआ समय अपनी कंपनी को दे। अगर आप अपने बिज़नस से खुश है तो जॉब चोधने से डरे नहीं इस पोस्ट की शुरुआत में हमने जो worst case सिनेरियो वाली बात की थी , उसे यद् करें। आपको बस ऐसी situations के लिए कुछ सेविंग्स कर के रखनी है। और अपने खर्चो को कम करना है। धीरे धीरे सब कण्ट्रोल में आ जायेगा लंबे रेतिरेमेंट्स की जगह मिनी रेतिरेमेंट्स ले। ऐसी जगहों पर घूमने जाये जो बहुत सस्ती है। जहाँ आप कम खर्चा कर के भी बड़े शौक पूरे कर पाए। जिस Country की करेंसी आपकी करेंसी से सस्ती होगी वहां आप ऐसा कर पायेंगे। ये ट्रिक्स आपके लिए लाइफ चेंजिंग होंगी। क्यूंकि इनमें आप दुनिया के कई पहलु देखेंगे। 

और अपने मिनी रिटायरमेंट से जब आप वापस आयेंगे तो आपके पास एक नया जोश होगा जिसकी मदद से आप पहले से भी ज्यादा मेहनत कर पायेंगे। तो अगर मैं इस book को एक लाइन समझाओ तो मैं कहूँगा की आपको रोकने वाले फालतू के Assumptions से छुटकारा पाइए। ऐसा हर काम जो इम्पोर्टेन्ट नहीं है उसको अपने रूटीन से बाहर निकालिए। अपनी इनकम को ऑटो पायलट पर डालने वाला बिज़नस स्टार्ट करिए और अपने फ्रीडम of लोकेशन को एन्जॉय कीजिये। 

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