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100 साल से बसे दलित परिवारों के घर तोड़े गए – कौन जिम्मेदार? सच्चाई, अधिकार, और न्याय की मांग

 

shivnandan nagar rahui news 2025-11-27


100 साल से बसे दलित परिवारों के घर तोड़े गए – कौन जिम्मेदार? सच्चाई, अधिकार, और न्याय की मांग

शिवनंदन नगर, रहुई (नालंदा) की घटना — 8 दलित परिवारों के घरों पर चला बुलडोज़र

27 नवंबर 2025 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, शिवनंदन नगर में प्रशासन ने 8 घरों को “अतिक्रमण” कहकर तोड़ दिया।
लेकिन रिपोर्ट में यह बेहद महत्वपूर्ण तथ्य भी लिखा गया है कि —
“जिन लोगों के घर तोड़े गए, वे भूमिहीन श्रेणी में नहीं आते।”

यही बात पूरे मामले को संदिग्ध बनाती है, क्योंकि गैरमजरुआ जमीन पर 100 साल से बसे दलित परिवारों को भूमिहीन मानना या न मानना, यह प्रशासनिक इच्छा पर नहीं, कानून और वास्तविकता पर निर्भर करता है।

क्या 100 साल से बसे दलित परिवार अचानक ‘अवैध कब्जेदार’ हो गए?

भारत में भूमि अधिकारों से जुड़े कई कानून और न्यायालयों के निर्णय स्पष्ट कहते हैं कि —

  • लंबे समय से बसे परिवारों को पुनर्वास, नोटिस और वैकल्पिक व्यवस्था दिए बिना बेदखल नहीं किया जा सकता।
  • दलित–महादलित समुदाय के स्थायी निवास को विशेष सुरक्षा प्राप्त है।
  • SC/ST (Prevention of Atrocities) Act के तहत दलित परिवारों के घर, जमीन, संपत्ति या निवास को नुकसान पहुँचाना अपराध है।

इसलिए सवाल उठता है —

क्या प्रशासन ने कोर्ट में गलत/अधूरी रिपोर्ट दी?

यदि जमीनी हकीकत यह है कि लोग पीढ़ियों से वहीं रह रहे थे, तो कोर्ट को यह जानकारी देना प्रशासन का कर्तव्य था।
यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह कानूनी कदाचार (Misrepresentation) माना जा सकता है।

“विकास नहीं करना चाहिए?” — क्या दलितों को सज़ा दी जा रही है?

ग्रामीणों का आरोप है कि

“रिपोर्ट में यह दिखाया गया कि लोग भूमिहीन नहीं हैं, इसलिए उनका घर तोड़ा गया।”

यह सोच अत्यंत खतरनाक है।
इसका मतलब हुआ कि—

अगर दलित परिवार थोड़ा भी विकास कर ले, पक्का घर बना ले, तो वह ‘अवैध’ बन जाता है — और उसका घर तोड़ दिया जाएगा।

यह कैसा न्याय है?
क्या दलित समाज का विकास होना अपराध है?
क्या 100 साल पुरानी बस्तियों को इसलिए उजाड़ा जाएगा कि वे आज पक्के घर में बदल गए?

कानून क्या कहता है? (आपके अधिकार)

1️⃣ बेदखली से पहले 3 चरण की प्रक्रिया अनिवार्य है

  • नोटिस
  • सुनवाई
  • वैकल्पिक व्यवस्था / पुनर्वास

अगर इनमें से कोई भी कदम नहीं उठाया गया है, तो पूरी कार्रवाई गैरकानूनी मानी जाती है।

2️⃣ SC/ST Act की धारा — 3(1)(r), 3(1)(s), 3(1)(za)

दलित परिवारों के घर या संपत्ति को किसी भी रूप में नुकसान पहुँचाना —
संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence)
गैरजमानती अपराध

जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी पर भी कार्रवाई संभव है।

3️⃣ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय

  • दलित, आदिवासी और वंचित वर्गों की बस्तियों को बिना पुनर्वास उजाड़ना अवैध है।
  • प्रशासन को “मानवीय और संविधानसम्मत” तरीका अपनाना अनिवार्य है।

इस घटना में उठने वाले गंभीर सवाल

1. क्या CO द्वारा कोर्ट में गलत जानकारी भेजी गई?

यदि रिपोर्ट में भूमिहीनता छुपाई गई तो यह बहुत बड़ा अपराध है।

2. क्या केवल दलित परिवारों को निशाना बनाया गया?

अगर आसपास के दूसरे लोगों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भेदभावपूर्ण कार्रवाई (Discriminatory Action) है।

3. क्या पुनर्वास, मुआवजा और वैकल्पिक भूमि दी गई?

यदि नहीं, तो यह मानवाधिकार उल्लंघन + संवैधानिक अधिकारों का हनन है।

पीड़ित परिवारों को क्या करना चाहिए? (प्रैक्टिकल गाइड)

1️⃣ NCSC (राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग) में शिकायत

यह सबसे शक्तिशाली और प्रभावी संस्था है।
— आयोग DM, SP, CO, SDM सभी को तलब कर सकता है
— मौके की जांच करा सकता है
— मुआवजा दिलवा सकता है
— दोषी अधिकारियों पर SC/ST Act लगवा सकता है

2️⃣ SC/ST पुलिस स्टेशन/थाना में FIR

धारा 3(1)(r), 3(1)(s), 3(1)(za) के तहत शिकायत दर्ज हो सकती है।

3️⃣ जिला प्रशासन, DM और गृह विभाग को सामूहिक आवेदन

गांव के सभी प्रभावित परिवार मिलकर आवेदन करें।

4️⃣ हाईकोर्ट में रिट (अगर आवश्यक हो)

  • मुआवजा
  • पुनर्वास
  • कार्रवाई का पुनरीक्षण
  • गलत रिपोर्ट पर जांच

इन सभी बिंदुओं पर कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।

हमारी स्पष्ट माँग (जनहित में)

1️⃣ जिन दलित परिवारों के घर तोड़े गए, उन्हें
तुरंत मुआवजा + वैकल्पिक जमीन + पुनर्वास दिया जाए।

2️⃣ पूरी बस्ती को उसी स्थान पर बसाने का आदेश दिया जाए जहाँ वे 100 साल से रह रहे हैं।

3️⃣ जिस अधिकारी ने कोर्ट में गलत/अधूरी रिपोर्ट भेजी,
उसके खिलाफ SC/ST Act + विभागीय जांच हो।

4️⃣ भविष्य में बिना पुनर्वास दलित परिवारों पर बुलडोजर चलाने पर
कठोर कार्रवाई सुनिश्चित हो।

अंत में – न्याय केवल कानून से नहीं, जागरूकता से मिलता है

यह मामला केवल 8 घरों का नहीं है —
यह दलित अधिकारों, मानव गरिमा, और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता से जुड़ा मुद्दा है।

आज यदि इस पर रोक नहीं लगी, तो
कल किसी और दलित बस्ती पर बुलडोज़र चल सकता है।

कृपया इस पोस्ट को जितना हो सके उतना शेयर करें, ताकि परेशान किए गए सभी दलित परिवारों की आवाज़ हर जिम्मेदार अधिकारी तक पहुँचे और उन्हें न्याय मिल सके। आपकी एक साझेदारी किसी के टूटे हुए घर को वापस बसाने की ताकत बन सकती है।

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